हम हमेशा कहते हैं कि हमारे बुजुर्गों का आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ बना हुआ है .घरों में बुजुर्गों की तस्वीर लगी रहती है ,ताकि उनका आशीर्वाद बना रहे और अपने पितरों का आशीर्वाद ग्रहण करने के लिए ही श्रद्धा के साथ जो तरपण किया जाता है ,उसे श्राद्ध कहते हैं .
ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वो परिवारजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें. पितृपक्ष आज से शुरू हो गया है जो 17 सितंबर तक रहेगा.
पितर कौन हैं ?
जिस किसी के परिजन चाहे वो विवाहित हों या अविवाहित हों, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है, पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है. पितरों के प्रसन्न होने पर घर में सुख शांति आती है.
जब याद ना हो श्राद्ध की तिथि
पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं. बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों के अनुसार आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है. इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है.
श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि जब महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए. इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा. तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं दिया. तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वो अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है और उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वो अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके. इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है.
हम तो सिर्फ इतना ही कहेंगे कि श्राद्ध में श्रद्धा के साथ अपने पितरों को तरपण करें, वस्त्र दान करें, भोजन दान करें . इससे उनका आशीर्वाद आप-पर बना रहेगा ,वरना उनके गुस्से का सामना भी करना पड़ सकता है और आप पर दुखों का पहाड़ टूट सकता है .