By Akshay Gupta
करीब एक महीने पहले सचिन पायलट करीब अपने 25 विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर पहुंच गए थे अचानक क्या ऐसा हुआ कि उन्हें अपने विधायकों के साथ होटल में बंद होना पड़ा।
कारण माना जा रहा था उन्हीं की सरकार के मुखिया अशोक गहलोत को, तब ऐसी खबरे आ रही थी कि राजस्थान की सत्ता के को पायलट स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के मिले नोटिस से इतने खफा हुऐ की उन्होंने सरकार को गिराने का मन बना लिया था,लेकिन अंदर खाने कि माने जाए तो अशोक गहलोत मानते थे कि सचिन पायलट के पास दहाई की संख्या के विधायक नहीं है तो उन्होंने भी इसकी पटकथा लिखना शुरू कर दिया था गहलोत चाहते थे कि पायलट को इतना अपमान का घूंट पिलाया जाए ताकि वह खुद ही पार्टी छोड़ने को विवश हो जाए और इसकी पटकथा उन्होंने कांग्रेस के सत्ता में आते ही लिखनी शुरू कर दी थी भले ही आलाकमान ने राजस्थान में 2 पावर सेंटर बना दिए थे और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बना कर भेजा था लेकिन गहलोत ने कभी भी पायलट को मंत्री से ज्यादा महत्व नहीं दिया और वह अक्सर कहते थे कि उपमुख्यमंत्री का तो कोई संवैधानिक पद होता ही नहीं।
में आपको एक एक घटनाक्रम से रूबरू करवाता हूं जिससे इन दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गई,
जब सरकार का गठन हुआ शपथ ग्रहण के दौरान पायलट राज्यपाल के बगल में गहलोत की तरह अपनी कुर्सी भी लगवाना चाहते थे लेकिन गहलोत इस बात के लिए राजी नहीं थे लेकिन पायलट ने आलाकमान से काफी जद्दोजहद करके अपने लिए कुर्सी लगवा ली।
जब विधानसभा शुरू हुई तब पायलट पहले दिन मुख्यमंत्री वाले दरवाजे से अंदर गए उस दरवाजे से केवल मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष ही जा सकते है पहले दिन तो पायलट चले गए लेकिन अगली बार उन्हें दरवाजे पर तैनात सुरक्षाकर्मी ने रोक दिया और कहा कि आप दूसरे दरवाजे से जाएं तब पायलट ने पहला अपमान का घूंट पिया था।
जब कैबिनेट की मीटिंग हुई तो पायलट को मंत्री की हैसियत के साथ मंत्रियों के साथ उनकी कुर्सी लगवाई गई जिसे भी सचिन पायलट ने अशोक गहलोत का षड्यंत्र माना लेकिन को शांत रहे।
और ऐसा माना जाता था कि सरकार के कई फैसले उन्हें मीडिया के द्वारा पता चलते थे अशोक गहलोत बात नहीं करते थे जिसका जिक्र उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में किया कि मेरी सचिन पायलट के साथ डेढ़ साल से कोई बातचीत नहीं हुई है, जब बसपा विधायकों का कांग्रेस में विलय करवाया गया तब भी सचिन पायलट से कोई राय नहीं ली गई तब भी सचिन पायलट शांत रहे।
जब राज्यसभा चुनाव आए तब पायलट एक सीट पर अपने खास कुलदीप इंदौरा को चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन दोनों ही उम्मीदवार गहलोत की पसंद के रहे और राज्यसभा चुनावों के दौरान गहलोत द्वारा पूरा ऐसा ड्रामा रचा गया ताकि आलाकमान को यह संदेश दिया जाए पायलट राजस्थान की सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन तब भी मामला संभल गया।
राज्यसभा चुनाव के बाद अशोक गहलोत ने आलाकमान पर दबाव बनाना शुरू कर दिया की राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष पद पर बदलाव किए जाएं क्योंकि काफी समय से सचिन पायलट उस पद पर थे अशोक गहलोत अपने किसी करीबी को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठना चाहते थे क्योंकि निकाय चुनाव आने वाले दिनों में होने हैं और जो प्रदेश अध्यक्ष होगा वही निकाय चुनावों में पार्टी के सिंबल बाटेगा,ताकि जमीनी स्तर पर उनका केडर मजबूत हो।
फिर जब विधायकों की हॉर्स ट्रेडिंग का मामला आया,तब पायलट को एसओजी का नोटिस मिला, लेकिन पायलट इस अपमान के घूंट को पी नहीं पाए उन्हें महसूस हुआ कि वह सरकार मैं नंबर दो की हैसियत रखते हैं और उन्हें ही देशद्रोह का नोटिस मिल गया और वो भी उन्हीं की सरकार के द्वारा, अब पायलट सरकार गिराने का मन बना चुके थे अपने 25 विधायकों के साथ मानेसर पहुंच चुके थे और उन्होंने कह दिया कि राजस्थान की सरकार अल्पमत में है सचिन पायलट के तीन करीबी विधायक रोहित बोहरा, चेतन डूडी और दानिश अबरार उनके कैंप को छोड़कर अशोक गहलोत कैंप में आ चुके थे, पायलट चाहते थे कि कि वह अपने 25 विधायकों के साथ सरकार गिरा दे और बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बन जाए लेकिन जैसा उन्होंने सोचा था वैसा हुआ नहीं पायलट के तीन विधायक गहलोत के पास पहुंच चुके थे और उनके कई करी विधायक जिन्होंने उन्हें उम्मीद थी कि वह उनका साथ देंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं, पायलट ने शुरुआती दिनों में ही बयान दे दिया था कि वह बीजेपी ज्वाइन नहीं करेंगे फिर राजनीतिक गलियारों में ऐसी खबरें चर्चा में आई सचिन पायलट तीसरा विकल्प राजस्थान में खड़ा कर सकते हैं लेकिन शायद उनके मन में आया होगा कि राजस्थान का अब तक का इतिहास बताता है कि यहां पर कभी तीसरा मोर्चा सफल नहीं हुआ।
पार्टी आलाकमान की ओर से भी प्रयास किए जा रहे थे कि पायलट को वापस लाया जाए क्योंकि आलाकमान भी पायलट के महत्व को जानता था ज्यादातर राज्यों में चुनावों के समय उनकी रैली की मांग सबसे अधिक होती है, और जो लोकप्रियता इस समय कांग्रेस में युवा नेताओं में सचिन पायलट की है वह किसी और की नहीं है, और प्रियंका गांधी ने सचिन पायलट को मनाने का जिम्मा अपने ऊपर लिया उन्होंने लगातार सचिन पायलट से संपर्क साधा उन्होंने सचिन पायलट के ससुर फारूक अब्दुल्ला के जरिए भी सचिन पायलट से बात की और सचिन पायलट की मां रमा पायलट को भी यह कहा गया कि आपके और गांधी परिवार की संबंध काफी पुराने हैं अगर आप ही पार्टी छोड़ेंगे तो बाहर क्या संदेश जाएगा पायलट प्रियंका गांधी से मिलने के लिए राजी हुए और राहुल गांधी के घर पहुंचे वहां पर उन्होंने अपनी मांगे आलाकमान के समक्ष रखी जिन पर आलाकमान ने 3 सदस्य कमेटी का गठन करने को कहा और जांच करके आलाकमान को रिपोर्ट सौंपने को कहा, सचिन पायलट ने आलाकमान को कहा की सरकार के फैसलों में उनकी राय भी अहम होगी उनसे पूछे बिना कोई भी फैसले नहीं लिए जाएंगे और उनके सदस्य विधायकों को मंत्री और निगम बोर्ड में जगह दी जाए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कोई जिम्मेदारी दी जाए और उनके दो विधायकों को उप मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी जाए और और भविष्य में उन्हें पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री घोषित करवाया जाए, माना जा रहा है कि सचिन पायलट की कुछ मांगो को तो सहमति मिल गई है और कुछ पर चर्चा चल रही है लेकिन अब सचिन पायलट जयपुर में है और सरकार के साथ हैं लेकिन वह कह रहे हैं कि जो बयान बाजी गहलोत ने उनके खिलाफ की उससे वह आहत तो हैं लेकिन पार्टी के प्रति सम्मान को देखते हुए वह सब भूलने को तैयार हैं और उन्होंने कहा की पार्टी और सरकार में उन लोगों को जिम्मेदारी दी जाए जिन्होंने 5 साल मेहनत की है सरकार की लाठियां खाई है और मैं उनकी आवाज उठाता रहूंगा फिलहाल देखना होगा क्या सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई का अंत होता है या नहीं।
अक्षय गुप्ता