राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के ट्रस्टों के नाम करीब 600 करोड़ रुपये की 100 बीघा से ज्यादा जमीन किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से केंद्र सरकार व तत्कालीन एसडीएम को भी इस मामले में पक्षकार बनाने का आवेदन दिया। इस पर हाई कोर्ट ने मप्र सरकार से एक हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि सिंधिया के ट्रस्टों के नाम की गई जमीन सरकारी है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि शहर के सिटी सेंटर, महलगांव ओहदपुर, सिरोल की सरकारी जमीन को राजस्व अधिकारियों ने उक्त दोनों ट्रस्टों के नाम कर दिया है।
भदौरिया ने आरोप लगाया है कि उक्त जमीन की बाजार कीमत करीब 600 करोड़ रुपये है, जिसे अधिकारियों ने हेराफेरी करने का षड्यंत्र रचा है।
जमीन सरकारी होने के बारे में यह दी दलील याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डीपी सिंह व अवधेश सिंह तोमर ने दलील दी कि जब देश आजाद हुआ था, तब तत्कालीन रियासतों का विलय किया गया था। तब रियासतों के राजाओं के साथ एक प्रतिज्ञा पत्र तैयार किया गया था।
इसमें कौनसी संपत्तियां राजा के पास रहेंगी और कौनसी सरकारी हो जाएंगी, यह तय किया गया था। इसी सिलसिले में 30 अक्टूबर 1948 को केंद्र सरकार व तत्कालीन सिंधिया राजघराने के बीच एक प्रतिज्ञा पत्र तैयार हुआ था। भदौरिया ने कहा कि उक्त 100 बीघा से ज्यादा जमीन को सिंधिया के दो ट्रस्टों के नाम किया गया है, वह प्रतिज्ञा पत्र में नहीं हैं। ये संपत्तियां शासकीय दर्ज हो गई थीं, इसीलिए केंद्र सरकार का भी पक्ष सुना जाए।