राज्यसभा चुनाव को प्रदेश में चल रहे हाई वोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामे का शुक्रवार को समापन होने जा रहा है. पिछले 15 दिन से चल रहे पॉलिटिकल ड्रामे ने प्रदेश की राजनीति की साफ तस्वीर लोगों के सामने रख दी है.
प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर जो यह साबित करती है कि वाकई अशोक गहलोत की जादूगरी का कोई जोड़ नहीं है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो गहलोत ने इन चुनावों में अपने चिर परिचित अंदाज से एक कदम आगे बढ़कर जिस आक्रामकता के साथ चीजों को हैंडल किया है, उससे उनका न सिर्फ राजनीतिक कद बढ़ा है, बल्कि उनके विरोधियों के हौसले भी पस्त हुए हैं. तमाम घटनाक्रम के बाद अब राज्यसभा की दो सीटों पर कांग्रेस की जीत तय मानी जा रही है.
सीएम गहलोत का पहला बड़ा दांव था कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को राजस्थान से चुनाव लड़वाना. वेणुगोपाल गांधी परिवार के लॉयलिस्ट तो माने जाते ही हैं संगठन में भी एक प्रमुख पद पर हैं.
उन्हें राजस्थान लाकर राज्यसभा सांसद बनाने से गहलोत की पकड़ राष्ट्रीय संगठन पर पहले से ज्यादा मजबूत होगी. इसके ही साथ ही गांधी परिवार की नजर में उनका कद भी बढ़ेगा. इससे पहले भी वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उपचुनाव में राजस्थान से राज्यसभा भेजकर ऐसा कर चुके हैं.
दो बड़े स्ट्रांग मैसेज दिए
राजनीतिक रूप से हाशिए पर जा चुके नीरज डांगी का नाम दूसरे प्रत्याशी के रूप में आगे बढ़ाकर गहलोत ने दो बड़े स्ट्रांग मैसेज दिए हैं. पहला तो यह कि प्रदेश में हर फैसला उन्हीं की मर्जी से होगा और दूसरा गहलोत के वफादारों को सत्ता में भागीदारी हर हाल में दी जाएगी. विधानसभा के 3 चुनाव हार चुके नीरज डांगी गहलोत खेमे के वफादार लोगों में से माने जाते हैं. दोनों प्रत्याशियों के चयन में गहलोत को साथ मिला उनके प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे का. अविनाश पांडे को गहलोत के हर फैसले का समर्थन करने के लिए जाना जाता रहा है.
ये प्लान लेकर चले गहलोत
लॉकडाउन काल खत्म होने के बाद जैसे ही राज्यसभा चुनाव की नई तारीखों का ऐलान हुआ उसी दिन से गहलोत अपने प्लान में जुट गए थे. प्लान था विरोधियों को पस्त करने का. प्लान था आलाकमान को अपनी मजबूती का मैसेज देने का. प्लान था पार्टी तथा सरकार के अंदर अपनी हर मुखालफत को कमजोर करने का. गहलोत ने बड़े ही सधे हुए अंदाज में हर चीज को आगे बढ़ाया. नीरज डांगी की उम्मीदवारी पर कांग्रेसियों में बगावत के बोल फूटते ही बीजेपी की ओर से दूसरा प्रत्याशी मैदान में उतारने के बाद तो गहलोत को मानो मौका मिल गया.
विधायकों को बैकफुट पर जाने पर मजबूर कर दिया
कांग्रेसी विधायकों के साथ आए बिना बीजेपी दूसरी सीट निकालने की स्थिति में नहीं थी. गहलोत के पास बीजेपी पर राजनीतिक हमला बोलने का इससे बढ़िया कोई मौका नहीं था. ऐसे में गहलोत और उनके करीबी विधायकों मंत्रियों ने ना सिर्फ बीजेपी पर बड़ी मात्रा में कांग्रेस व निर्दलीय विधायकों को खरीदने के लिए मनी ट्रांजैक्शन के आरोप लगाए तो दूसरी ओर एसओजी के छापे तथा कथित कॉल सर्विलांस की खबरें आने के बाद बाड़ेबंदी में बैठे विधायकों को बैकफुट पर जाने पर मजबूर कर दिया.
सत्ता को संभालने और बचाने में गहलोत का कोई सानी नहीं
बाड़ेबंदी में बैठे विधायक अनजान कॉल उठाने से भी बचने लगे. बाड़ेबंदी में राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को बुलाकर सेमिनार करवाने से लेकर गांधी पर बनी फिल्म दिखा कर विधायकों को एकजुट करने की कोशिश करते हुए गहलोत का यही मैसेज आलाकमान तक भी पहुंचा कि राजस्थान में सत्ता को संभालने और बचाने में गहलोत का कोई सानी नहीं है.